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पण नित्य ब्रह्मने कहो विकारी दोष एतो नहि मटे. ८ ब्रह्म विकारी कारण तेनु कहेवू पडशे, नहि कारण वण कार्य दोष ए मोटो नडशे, ब्रह्म विकारी स्वयं मानशो तो बहु दोषो; कदा टळे न विकार फोक निजमतने पोषो, परथी ब्रह्म विकार हेतु त्यां कर्म खरे अरे मानशो मानो मत स्याद्वाद त्यारे शुद्ध श्रद्धा आणशो. नित्य एक जो ब्रह्म बहु ते शाथी थावे; मानो भ्रांति दोष श्रुति तब व्यर्थ कहावे भ्रांति कारण ब्रह्म कहो तो ब्रह्मज भ्रांति, भ्रांति कारण कर्म कहो तो कर्मनी कांति; कर्म ब्रह्म बे वस्तुमाने अद्वैत ब्रह्म ते क्या रहा, ब्रह्म शाथी अनेक थावे ज्ञानिए कहो शुं कहयुं. १० ब्रह्म कहो सक्रिय यदि तो पक्षनी हानी, ब्रह्म कहो अक्रिय तदा बहुता केम मानी; इच्छाविशिष्ठ ब्रह्म कहो तो भ्रमणा आवे, इच्छा ब्रह्मनो गुण एम तो कोइ न गावे; एक वस्तु थावे बहु त्यां कर्म कारण जो कहो, कर्म ब्रह्मी भित्र माने द्वैतता मनमा लहो. कर्म ते ब्रह्म स्वरूप मानतां सत्य टळे छ, ज्ञान ध्यानने सदाचार सहु धर्म गळे छे; ब्रह्म एकनुं बहुपणुं जो काल अनादि, एकपणुं नहि थावे माने सम्यग्वादी. ब्रह्म एकनुं बहुपणुं ते काल भेदे जो कहो, हेतु विना नहि कार्य भव्यो वाद ए मिथ्या लहो. ११
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