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परमब्रह्म निराकरण ॥
छप्पय छंदः प्रणमुं श्री परमेश जगत्मा केवल ज्ञानी, पूजे चोसठ इन्द्र चरण पण नहि जे मानी; महिमा अपरंपार जगत्मां शक्ति अनन्ति, घातक कर्म व्यतीत प्रभुनी निर्मळ व्यक्ति द्रव्य क्षेत्रने कालभावे स्थिति अनादि अनन्त छे, एक व्यक्ति अपेक्षताथी स्थितिहि सादि सांत छे. अरिहंत ते बुद्ध तत्त्वनुं ज्ञान लह्याथी, अरिहंत ते विष्णु ज्ञानमां सर्व ग्रह्याथी; भासे ज्ञेय अनंत ज्ञानमां ब्रह्मा माटे, राग द्वेषनो नाश महेश्वर जिनवर माटे; आत्मोन्नतिनी प्राप्ति करवा मागे तेनो अनुसरो, माध्यस्थ दृष्टि राखी भव्यो सिद्धि शाश्वत मुखवरो. २ पद्रव्योनुं ज्ञान कर्याथी विवेक दृष्टि, सम्यग्दृष्टि प्रगटे भासे गुणगण सृष्टि. नव तत्त्वो पण षट् द्रव्योमा समाय जाणो, अष्ट पक्षनुं ज्ञान करी साचं मन आणो; सप्त नयने सप्त भंगीथी द्रव्य षट्ने धारीए, बुद्धिसागर अनेकान्तथी तत्त्व सत्य विचारीए. स्यात् अव्यय छे अनेकान्त नयद्योतक सारो, सापेक्षाए वस्तु धर्म छे चित्त उतारो' सापेक्षाए षड्दर्शन जिन दर्शन अंगो, सापेक्षाए वस्तु ज्ञानना सत्य तरंगो,
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