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ण पण भणेलाना मुखथी सांभली तेने समजी आल्हादशे. आगळना संस्कृतभाषाना जमानाना संगितपर असारना लोकोनुं हृदय प्रेम तत्ववालुं तेटलं होय एम परिपूर्ण लागतुं नथी. कारण संस्कृतना तमाम ग्रंथो छंदोमांछे, कोइ पण संगितमां कचित् मालुम पडे छे. शोभन स्तुतिना का शोभन मुनि, विनयविजयजी, यशोविजयजी, जयदेव जेवाओए एक वखत आ मार्गे प्रकाश को जणाय छे पण तेना पछी ते मार्गे कोइपंडित परवों होय एम जणातुं नथी.
अरे अत्यारे अनेक जातना लोको पण एकतारो, मंजीरानी धूनमां बे घडी सांगितमयमार्गी भजनमा मस्त जणाय छे. तथा केटलाक ठुमरी अने साधारण पदोमां ईश्वर स्तवनादि पोताना हृदयने मीय लागे तेवा रागोमां गाय छे. केटलाक लोको भैरवी, मालकोश, धनाश्री, सारंग, कल्याण. वगेरे रागोमां सतार, हारमोनीयम वगेरे वाघोमां, छाया जमावी घडीभर दुःखनी विस्मृति करावे छे. नाटकोमां पण गायन, गायन ने गायन ज. अर्थात् आखा देशोना देशोमां संगीतनी लगनी लागी रही छे. • तो आवे समय संगीतद्वाराए लोकोनां हृदयने उन्नत करवा. ए एक मुख्य कर्त्तव्य छे.
जैन साधु योगनिष्ठ पूज्य श्री बुद्धिसागरजी. एओना करेला भजनपद संग्रहना चारे भाग म्हें वांच्या छे. अने ए अवलोकनी म्हारुं हृदय शांत थाय छे. कारण व्यवहार परमार्थ अने स्वदेश ए त्रणनी उन्नतिना सारुं गद्यमां, पद्यमां, ग्रंथो बांधी एमणे अल्प समयमां मुर्जर वर्गर्नु हित साचव्युं छे. एमना भजनोमां गौरवता एवी छे के जेम जेम वांचता जइए छीए तेम तेम पुनः पुनः वांचवा ए कवितामा जिज्ञासा थाय छे.
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