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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एमना माटे कवीश्वर माघ वाक्य सफळ छे, क्षणे क्षणे यनवता मुपैति, स्तदेवरूपं रमणियतायाः . जे जे पदार्थ जोतां छतां पण फरी' जोवा आकर्षण करे ते ज रमणीयता. पहेला भागमां भाषा मस्त छे. एटले पोताना एक अध्यात्म निशानने लेइ सहज स्फुरणाथी ए भाग रच्यो छे तेमां आनंदघन अने चिदानंदजीनी भाषानुं खास अनुकरण कर्यु छे. तेथी ते अप्रासंगिक नहि गणाय. आज रीतने अनुसरी सरस्वतिचंद्रमा द्विभाषिक जे होरी लखी छे. मेंतो नहिरे रहुंगी ए नगरमें, धोळे दहाडे कीशनजी लुटे छे अमने, ए गोपीओनां शुद्ध प्रेमने आकर्षाइ प्रेम वाक्यो अने आग. छना महान् कवीश्वरोए विरहावस्थामां के मस्तावस्थामां झाड पहाड नद सरोवरोने मनुष्यो पासे प्रश्नो पुछायल दोप ए छ एम कहेवायज केम? नज कहेवाय. ... तद्वत् आ सागरजी कृत कवितानो प्रेम तथा स्वात्ममस्ता वस्थाने लेइ आनंदघन तथा यशोविजयजी वगेरेनी रीतिने अनुसरतां कोइ आक्षेप मूके तो अमो काढी नाखीये छीए, भजन करले भजन करले, भजन करले भाइरे, दनिआंदारी दुःखनी क्यारी, जुठी जगतनी सगाइरे, ए भजन करती वखतनो कानो उमंग एम वैराग्यावस्था अने भजननो राग, छाया, खरेखर असरकारक छे, अने एनी For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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