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डभोइ लोढणपार्श्वनाथ स्तवन.
सुमतिनाथ गुण शुं मलीजी-ए राग. लोढण पार्थ जिनेश्वर वंदु, भाव धरी सुखकारी; धरणेन्द्र पद्मावती सेवे, पार्थ यक्ष गुणकारी. प्रभुजी म्हारा जगमां तुज बलिहारी.. मन वचन कायाथी भक्ति, करतां मंगलकारी रुद्धि सिद्धि तुष्टि पुष्टि, अनुभव सुख निर्धारी. प्रभुजी. २ हरिहर ब्रह्मा अलख निरंजन, वर्तो जग जयकारी; पुरिसादानी पुरुषोत्तम तुं, जग जन आनंदकारी. प्रभुनी. ३ तुन सेवाथी शिव सुख मेवा, चिंतामणि हितकारी; कामकुंभ श्री कल्पवृक्ष तुं, परमानंद पदधारी. प्रभुजी. ४ तुज सेवामां निशदिन रहीशुं, प्राणजीवन उर धारी; बुद्धिसागर प्रेमे गावे, लेशो आ विनति स्वीकारी. प्रभुजी. ५
अथ पुद्गल छत्रीशी ॥ दुहा ॥ निसानित्यानेक एक, भिन्नाभिन्न स्वरूप तेने प्रणमो भविजना, लोकाग्रे चिद्रूप. आत्मस्वरूप विचारणा, आत्मध्यानमां लीन; चेतन उपयोगी थइ, करे कर्मने छिन्न. धर्म धर्म जग सहु करे, करता पर उपदेश आत्मधर्म विचार वण, समजे नाह ते श.
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