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शुद्धदृष्टि. दुहा. शुद्धदृष्टि उपयोगमां, अनुभव सुख पमाय? टळे विकल्पनी श्रेणियो, परम प्रभु परखायः शुद्धसमाधि स्वरूपमां, निर्विकल्प उपयोगा परमज्योति झळके भली, आनन्दअनुभव भोग अन्तर्दृष्टि शुद्धिथी, जीवन जग जयकार; चिदानन्द मेळो मळे, नासे दुःख विकार. चैतन्यसृष्टिव्यक्तिनी, लीला अपरंपार; . खयं देखतो जाणतो, अनुभव निश्चयधार. विवेकदृष्टिजागृति, निद्रा नहीं लगार; ज्ञानदृष्टिरविनी प्रभा, त्यां नहि तमः प्रचार. जड चेतननी भित्रता, इष्टानिष्ट न दृष्टि; निर्मलज्ञाननी ज्योतिमां, समतामेघ सुवृष्टिः प्रतिप्रदेशे प्रगटतुं, सुख अनन्त अपार; भोगवतां निज सुखने, नासे मिथ्याचार. विषयवृत्तिवेगो टळे, गुणस्थानक सोपान चढतां निर्मलता घणी, अनुक्रमे भगवान्. वैराग्ये मन निर्मल, ज्ञाने निज उपयोग; वीर्ये स्थिरता संपजे, होवे शिखसुख भोग. परम प्रभु ध्याने मळ्या, आव्यो अनुभव बेश; बुद्धिसागर भक्तिथी, सहजानंद हमेश.
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