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३० स्थिरउपयोगथीरे, जयलक्ष्मी झट वरथं.
ज्ञानी संगतेरे, अनुभव वातो करशुं प्रभुता आत्मनीरे, सहज दशामां वरशुं. ऋद्धि आत्मनीरे, तेमां क्षण क्षण राचं; चढताभावथरे, बुद्धिसागर याचं.
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धन्य. ८
धन्य.
९
धन्य. १०
सहज स्वरूपवन्दन.
१
जय सहज स्वरूपी, रूपारूपी, जगगुरु स्वामी, निर्नामी. जयजय सुखकारी जग बलिहारी, बहु उपकारी, जय स्वामी. २ हुं शरण ग्रहुंलुं पाय पहुंलुं विनति करुं, शिरनामी. अभयपद चहुंछु करगरी कहुंछु, शरणे रहुंछु, बहुनामी. मने मार्ग बतावो, करुणा लावो, दिलमां आवो, विश्रामी. ५ विनती उर धारो, सेवक तारो, शरण तमारो, हे स्वामी. आपो सुख शान्ति, टाळी भ्रान्ति, अर्षी कान्ति, गुणरामी ७ जय सद्गुरु देवा, करुछु सेवा, मीठा मेवा, शिवरामी
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