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चंद्रप्रभु स्तवनम्। ए अब शोभा सारी हो मल्लिजिन. ए राग. चंद्र प्रभु पद राचुं हो, चिद्धन, चंद्रप्रभु पद राचु, मन मान्यु ए साधु हो चिद्घन, चंद्रप्रभु पद राचुं. शुद्ध अखंड अनन्त गुण लक्ष्मी, तेना प्रभु तमे दरिया) सत्ताए ज्ञानादिक लक्ष्मी, व्यक्तिपणे तमे धरिया हो. चि. १ अनाघनन्तने आदि अनन्त, सत्ता व्यक्ति मुहाया; अस्तिनास्तिमय धर्म अनन्ता, समय समयमा पाया हो. चि. २ क्षपक श्रेणिए उज्जवल ध्याने, घातक कर्म खपाव्यां दग्ब रज्जुवत् कर्म अघाति, तेरमे चउदमे नसान्यां हो. चि. ३ केवळ हाने ज्ञेय अनन्ता, समय समय प्रभु जाणो; अव्यावाध अनन्तु वीर्य, समय समय प्रभु माणो हो चि. ४ ऋद्वि तमारी तेवीज मारी, कदीय न मुजी न्यारी चंद्र प्रभु आदर्श निहाळी, आत्मिक रूद्धि संभारी हो. चि. ५ निज स्वजाति सिंह निहाळी, अजन्दगत हरि चेत्यो, निज स्वजातीय सिद्ध संभारी, जीव स्वपदमां वहेतो हो. चि. ६ अन्तर दृष्टि अनुभव योगे, जागी निजपद रहियों बुद्धिसागर परम महोदय, शाश्वत लक्ष्मी लहियो हो. चि. ७
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