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चालि. श्री नवकार समो जगि मंत्र न यंत्र न अन्य, विद्या नविऔषध नवि एह जपे ते धन्य; कष्ट टल्यां बहु एहने जापे तुरत किद्ध, एहना बीजनी विद्या नमि विनमीने सिद्ध ॥ १२० ॥
दुहा. सिद्ध धर्मास्तिकायादि द्रव्य, तिमज नवकार ए भणे भव्य; सर्वश्रुतमां वहोए प्रमाण्यो, महानिसीथे भली परिवखाण्यो॥१२१॥
चालि. गिरिमाही जेम सुरगिरि तरुमांहि जिम सुरसाल, सार सुगंधमां चंदन नंदन वनमां विशाल मृगमा मृगपति खगपति खगमा तारा चंद्र, गंगनदीमां अनंग सुरुपमा देवमां इंद्र. ॥ १२२ ॥
दुहा. जिम स्वयंभूरमरण उदधिमाहि, श्री रमण जिम सकल सुभटमांहि। जिम अधिक नागमांहि नागराज, शरमा जलद गंभीरगाज॥१२३॥
चालि. रसमांहि जिम इखुरस कुलमां जिम अरविंद, औषधांहि सुधा वसुधा धवमा रघुनंद; सत्यवादीमा युधिष्ठिर धीरमा ध्रुव अविकंप, मंगलमांहि जिम धर्म परिच्छद सुखमां संप ॥ १२४ ॥
धर्ममाहि दया धर्म मोटो, ब्रह्मवतमाहि वज्जर कछोटो; दानमांहि अभयदान रुडं, तपमाहि जे कहेवू न कुडुं. ॥ १२५॥
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