________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७४ हंस क्रोंच सारस थई, कानई करई तस नादः बालक थई भेला रमे, पूरे बाल्य सवाद. ॥ ६ ॥
दहा.
वालता अतिक्रमें तरुणभावै, उचितथिति भोग संपत्ति पावै दृष्टि कांताई जो शुद्ध जो३, भोग पण निर्जरा हेतु होवे. ॥७॥
चालि. परणी तरुणी मन हरणी घरणीने सोभाग, शोभा गर्व अभावै घर रहेतां वयराग; भोग साधन जब छंडे मंडे व्रतस्यु प्रीति, तव व्यवहार विराजे वयरागी प्रभुनीति. ॥८॥
दुहा. देव लोकांतिका समय आवई, लेई व्रत स्वामी तीरथ प्रभावई। उग्र तप जप करी कर्म गाले, केवली होइ निज गुण संभाले.॥९॥
चालि. चउत्रीस अतिशय राजता गाजता गुण पांत्रीस, वाणी गुण मणी खांणी प्रातिहारय अडईस; मूलातिशय जे च्यार ते सार भुवन उपगार, कारण दुःख गण वारण भव तारण अवतार. ॥१०॥
दुहा. देह अद्भूत रुचिर रूप गंध, रोगमल स्वेदनो नहीं संबंध (१) पास अति सुरभि(२) गोक्षीर धवल, रुधिरने मांस अणवित्र अ.
मल (३) ॥१॥
चालि. करईरे भवयिति प्रभूतणी, लोकोत्तर चमत्कार,
For Private And Personal Use Only