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करवो कोनो सत्समागम सन्त कोने जाणवा, सन्तनी करणी अहो शुं भेद तेना आणवा; आतमाने सिद्ध तेमां भेद शो छे धारीए, आगम अने अनुमानथी ए सर्व प्रश्न विचारीए. आतमा हूं द्रव्यथी नित्य अन्यगतिथी आवीयो, पूर्व भवमा कर्या कर्म जे ते ज साथे लावीयो द्रव्य षट्थी जगत पूर्यु काल अनादि जाणीए, उत्पत्ति व्यय ध्रुवता ए द्रव्य लक्षण आणीए. कर्म पुद्गल द्रव्य जाणो बंध छे परभावधी, कर्मथी भिन्न आतमा छे मुक्त शुद्ध स्वभावथी; ज्ञेय सघळां द्रव्य ज्ञाने हेय पर वस्तु कही, आदेय जगमा आतमा एक सत्य श्रद्धा सहही. जीव जड बे तत्व भाख्यां तत्त्व नव पण जाणीए, काल अनादि तत्व बे छे ने अनंत पिछाणीए; आतमाने कर्मनो संबंध काल अनादिथी, पहेलं कर्म के आतमा नहि जाणीए ते ज्ञानथी. देहरूप जे सृष्टि तेनो आतमा कर्ता कह्यो, पर स्वभावे कर्म कर्ता बोध ए मन सद्दह्यो आत्मभावे रमणताथी कर्म सृष्टि परिहरे, अवर कर्ता कह्यो नहि ईश सत्य युक्ति ए खरे. सर्व जीवनो आतमा नहि एक एवं धारीए, प्रतिशरीरे भिन्न चेतन युक्ति नयथी विचारीए; सर्वव्यापी आतमा ने देश व्यापी छे खरो, व्यक्तिथी छे देश व्यापी ज्ञानथी व्यापक धरो. १०
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