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सस म्हारु पिय गणीने मोहजलधि झट तरु; जागजो नरनारीओ झट मोक्ष पन्थे चालशो, बुद्धिसागर सहजयोगे अखंडानंद म्हालशो.
सिद्धांतबोध.
हरिगीत छंद चाल. जाग चेतन जाग चेतन मोह निद्रा परिहरी, कोण तुं छे क्याथी आव्यो ज्ञान तेनुं कर जरी; आ जगत शुं छे कर्म शुं छे रूप त्हारु शुं खरे, आदेयने शुं हेय जगमां अमर शुं ने शुं मरे. क्यारनुं आ जगत छ ने तत्व तेमां शां रह्यां, तत्त्व लक्षण सत्य शुं छे जगत्मा कोने कह्यां;
आतमा ने कर्मनो संबंध केवो जाणीए, पहेलं कर्म के जीव तेमां तर्क एवो आणीए. सृष्टि कर्ता छे के नहि ते युक्तिथीज विचारीए, सर्व जीवनो आतमा एक छे नहीं ते धारीए; सर्वव्यापी आत्मा के देशव्यापी छे खरो, आतमा चिन्ह केवु तर्क तेनो मन करो. कर्म सारु खाटुं तेनो न्याय कोणन आपतुं, धर्म करतां कोटी भवतुं कर्म कोणज कापतुं; उगर के मरवू मारे स्वथकी के पर थकी, मरतां अंते साथ शुं छे ज्ञान कर आगम थकी.
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