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१०७ सदाचार वण पोपलीला जगत्मा प्रसरी रही, धामधूमे मूर्ख राच्या सदाचार वण सुख नहीं. सदाचार वण नगर शेठिया नीच कहाया, सदाचार वण धामधूममा ढोंग कहाया; सदाचार वण भक्ति नकामी शुष्क विचारो, टीलांटपका करो हजारो पण नहि आरो, सदाचारथी उच्च थाता जगत्मां सहु जन अहो, बुद्धिसागर सदाचारमा भव्य जन राची रहो.
नगरशेठ पुत्रो.
छप्पय छंद. नगरशेठना पुत्र थइ केइ धर्म न पाळे, नाम मोटुं पण दर्शन मुंडं शुं अजुवाळे; नगरशेठना पुत्र अहो केइ कूतर पाळे, कूतर संगी जन्मी खरेखर सत्य न भाळे; ढोंगी जनथी प्रेम करता छेल छबीला थइ फरे, श्वान सरखी हिंमत नहि मन बायला केइ अवतरे. धर्म क्रियाने व्हेम कहीने कांड न करता, नहि देशनी दाझ लाजवण ज्यां त्यां फरता; साधु गुरुनी पासे जातां बहु शरमाता, परनारी वेश्याना संगे मन मकलाता;
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