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सदाचार
छप्पय छंद. सदाचारथी उच्च खरेखर सर्वे थावे, सदाचार वण उच्च जाति पण नीच कहावे; सदाचारथी नीच जनो पण उच्च विचारो, सदाचार वण धर्म खरेखर ढोंग ज धारो सदाचार त्यां धर्म साचो समजशो समजु जनो, अशुभ आचारो तजी झट सदाचारी झट बनो. सदाचार वण सन्त न शोभे ज्ञानी ध्यानी, सदाचार वण प्रभुपूजा पण कर्मनिशानी; सदाचार वण ज्ञातिवंश ने कूळ न शोभे, सदाचार वण दुष्ट विचारो कदी न थोभे; सदाचारथी जाणशो अहो जगत्मा कीर्ति खरी, सदाचारथी योग्य पुरुषे शर्मलीला घट वरी. सदाचार वण पोपट सम अहो विद्या परखो, सदाचारिजन देखी भव्यो मनमा हरखो; सदाचारिनुं ज्ञान खरेखर समजो साधु, सदाचार वण ज्ञान खरेखर समजो काचुं; धामधूम पण सदाचार वण शोभती नहीं छे जरा, सदाचारने पाळता जन धन्य जगमा अवतर्या सदाचार वण धर्म क्रियाथी ढोंग जणातो, सदाचार वण ढोंगी अरे दुर्गतिमां जातो; सदाचार वण शेठ न शोभे वेठ बरोबर, सदाचार वण सन्त न शोभे जगमां दुःखहर;
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