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उपदेश रत्न
झूलणा छंद. वित्त आप्यु नहि दुःखिपाने अरे, नाम प्रभुनु अरे केम तारे; दोषिना दोष टाळ्या नहि रहेमथी, जन्मीने ते अरे जन्म हारे. वि.१ सुजननी संगति सर्व मानव करे, मुजनने मान सर्वेज आपे; सद्गुणीनी प्रशंसा जगज्ज न करे, सन्तनुं वेण को न उथापे. वि.२ सुजनना बेली सहु कोण एर्नु थशे, रहेम दृष्टिथकी ते विचारो दोषीना दोपहत् सत्य धर्मी खरो, पापीनु पाप प्रेमे निवारो. वि.३ दोषीना दोष धोवा दयागंगथी, सन्त साचा करे कार्य एबुं चंड कौशिक अरे समज सद्ज्ञानथी, वीरनुं वाक्य ए चित्त लेवू.वि.. सर्वना श्रेयमां श्रेय म्हारू रघु, दोषीपर प्रेमनी दृष्टि वरसो; भलं करे मानवी सत्य साधु खरो, दुःख मोहाधिने शिघ्रतरशो.वि.५ उच्चने नीचनो भेद सहु टाळीने, ऐक्यता कीजीए सर्व साथे; उच्च ने भेद भासे नहि सर्वमां, एम भाख्यु अहो विश्वनाथे. वि. वचन काया अने ज्ञान सत्ता थकी, प्राणियोने पडयां दुःख बारी सर्वनी उन्नति कीजीए प्रेमथी, कार्य उपकारनां धर्म धारो. वि.७ उच्च जीवन करो पुण्य करणी करो, कार्य उपकारना साथ आये; बुद्धिसागर खरी धर्म करणी करो, सुजनना चित्तमा सत्य भावे.वि
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