________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देहस्थ आत्मानी परमात्मावस्थानुं स्मरण,
झूलणा छंद. समजी ले भव्य तुं समजी ले भन्यतुं खीलबजे आत्मशक्ति प्रभुनी; आत्म सामर्थ्यथी सर्व कर्मों टळे,शक्ति हृदये धरो चिद्विभुनी स.१ आत्ममा रमणता ध्यान दृष्टि थकी, दुःखना कारणो सर्व नाशे. शरीर व्यापी रह्यो देह भिन्नन लह्यो,ज्ञान सामर्थ्यथी सहु प्रकाशे स.२ स्वाश्रयी थइ रहो सत्यशांति लहो, करणी जेवी तथा कार्य यावे . चितना दोषवारो महाशक्तिथी, परम आनंद पद भव्य पावे. स. ३ गुद निर्भप प्रभु कृष्ण रहेमान् तुं, सूर्यने विष्णु तुं प्रभु सवायो। तेजनो पार नहि वाणी गोचर नहि,ध्यानिनाध्यानमा तुन आयो. अलहळे ज्योति आत्ममभुनी सदा, दुःखनी भ्रांतियो दूर नासे; वीर विश्वेश तुं पिंड वसतां छता, योगियोना हृदयने प्रकाशे. स. ५ तेजनुं तेज तुं देवनो देवतुं, ज्ञानसागर प्रभु तुं मजानो; दृश्य दृष्टा हुँहि वचन सापेक्षथी, परम ध्याने रहे प्रभु न छानो.स.६ अलख निर्भय प्रभु विष्णुने बुद्ध तुं, शुद्धज्ञाने प्रभु था प्रकाशी देव वीतराग तुं शुद्ध सत्ता आहे, व्यक्तिथी था प्रभो धर्मवासी स ७ सारमा सार तुं पूज्यमा पूज्य तुं, जागतो देव तुं देह दीठो; बुद्धिसागर नमुं ज्ञान दातारने, रोम रोमे अहो नित्य मीठो. स. ८
For Private And Personal Use Only