________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७४ शक्ति अपरंपार आत्मनी प्रगट करो झट, पाणी अगोचर नाथ तेहनुं ध्यान धरो घट, आत्मशक्ति प्रगट करवा योगविद्या आदरो, जैनशैली गहन जाणी गुरुपदेशे मन परो. कुंटुंबसम दुनिया जीव भासे भेद टळे छे, पैर और ने क्लेश बुद्धि सहु दर टळे छे; आनंद अपरंपार अनुभव निश्चय आये, अशुद्ध भावनो नाश शुद्धता सहज सुहावे; आत्मशक्ति प्राप्त करवी आत्म श्रद्धापर रही, बुदिसागर आत्मशक्ति दीलमां व्यापी रही. स्वस्ति श्री खंभात नगरमा प्रेमे आवी, भेटया स्तंभन पार्श्वजिनेश्वर ध्यान जगावी; अचळ महोदय देव प्रेमथी दीठा भावे; परम प्रभु विख्यात जिनेश्वर हृदय मुहावे; परम प्रभुनु ध्यान धरीने ग्रंथ रचना आ करी, परमब्रह्म नामथी शुभ जगत्मा कीर्ति वरी. भणे गणे ते परम प्रभुता निश्चय पामे, अजरामर थइ बेश ठरे ते निर्भय ठामे; नासे मिथ्या रोग धर्मना ध्यान प्रभावे, अष्टसिद्धि साम्राज्य हृदयमां वेगे आवे; ओगणीस पासठ चैत्र पुनम ज्ञानी जय सुख पामशे, बुद्धिसागर गुरु कृपाथी सत्य सुखडा जामशे.
४८
For Private And Personal Use Only