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शुद्धगुणउत्पाद दोष ते अंशे हरीए; आत्मगुणोमा प्रेम दया गुण बहु वधारो, सत्यधर्मने ग्रहण करीने आतम तारो। आत्मरमणतापरम भक्ति योगी निश्चय घट वरे, बुद्धिसागर गुरू कृपाथी परम सुख शिष्योवरे। स्वमसमी दुनियादारी सहु दूर निवारी, परम प्रेमधी रटन करो आतम जयकारी; पुरूषोत्तमने परमब्रह्म आतम छे पोते, भूली निजनुं भान अरे केम बाहिर गोते; आत्म शक्ति आत्ममा छे ध्यानीं झट जागती, मोह निद्रा दुःखमय खरे ध्यान योगे लागती. परमब्रह्म जगदीश जीव तुं मंगलकारी, क्या शोधे तुं बाह्य हृदयमा देख विचारी; निराकार भगवान् कहु जे जे ते तुं छे, घर निश्चय विश्वास चिदानन्द ईश्वर तुं छ; विज्ञानघन तुं हंस निश्चय देह देवळमा रह्यो, सत्यभानु परम महोदय कदी न जावे तु कह्यो. सामर्थ्य प्रगटाव खरेखर मळीयु टाणुं, सामर्थ्य प्रगटाव मळ्यु नृभवतुं नाणुं; सामर्थ्य प्रगटाव मोहनी खटपट वारी, सामर्थ्य प्रगटाव ध्याननी दृष्टि धारी; सामर्थ्यने प्रगटावरे जीव हार हिम्मत नहि जरा, आत्मशक्ति प्रगट करी ते जगत्मा जन्म्या खरा. अद्भूत महा सामर्थ्य आत्मनुं योगाभ्यासे, ब्रह्मरन्ध्रमा आसन पूरो झळहळ भासे;
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