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७२ वीर जिनेश्वर वचन विचारी धर्म विचारो; समजी मन स्याद्वाद तस्वने कार्य सुधारो। प्रगटावो सामर्थ्य आत्मनुं ध्यान करीने, धरो शक्ति विश्वास चिदानंद शर्म वरीने सहज शुद्ध स्वभाव पामो बाह्य ममता परिहरी, नित्य विष्णु जीव पोते सत्य श्रद्धा मन धरी. अनेक नामथी वाच्य खरेखर छे निर्नामी. रह्यो रूपमा अरूप भिन्न तुं सुख गुणरामी; क्या शोधे तुं बाह्य बाह्यमां जडता भासे, अन्तरमा यदि शोध करे तो तत्त्व प्रकाशे; शक्ति अनंतिनाथ आतम परम प्रभुता गेहरे, विश्व व्यापक व्याप्य पण तुं अन्यने शुं करगरे. चिदानन्द चेतन तुं ज्यारे निजघर आवे, सहजानंद स्वभाव खरेखर घटमां थावे; नासे देहाध्यास वासना मूळ बळे छे, परम प्रभु विश्वास कर्मनुं जोर टळे छे; आत्म शक्ति प्रगट करवा ध्यान अंतर धारीए, बुद्धिसागर शिव सनातन शुद्ध धर्म विचारीए. घरो आत्मनी टेक बाह्य सहु भूली जाशो, धरी सत्यपर मेंम ब्रह्म मुख हृदय विकासो; ध्यान दृष्टिथी तन्मय थाओ स्वयं प्रभु छो, ज्ञान शक्तिथी सर्व प्रकाशो स्वयं विभु छो; जीव इश्वर भेद हेतु कर्म टाळो ज्ञानथी, अलिप्तभावे बाह्य वर्तन राखशो शुभ ध्यानयी. आत्मगुणनी शुद्ध प्रवृत्ति ध्याने करीए,
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