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चितिशक्ति. चितिशक्तिने गोळखवाथी, समजाशे घटमां ऋद्धि चितिशक्तिना पूर्णपणाथी, क्षायिक भावेछे सिद्धि. आत्मज्ञान वण जग अंधारु, आत्मज्ञान अर्पे सारु; आत्मज्ञान वण बाह्यदशामा, निशदिन जाणो अंधारु. ॥२॥ आत्मज्ञान वण कदी न शान्ति, टळे नहि भवभय भ्रान्ति; आत्मज्ञान उपयोग दशा वण, प्रगटे नहि अन्तर कान्तिः ॥ ३ ॥ आत्मज्ञान रविना उद्योते, मिथ्यातम झट अळपाशे; सोहं सोहं रटना योगे, परगट पोते परखाशे. ॥४॥ आत्मज्ञान वण अंधो मानव, भटकेछे भवमां भारी; आत्मज्ञान वण कदी न टळती, जोशो आ दुनियादारी ॥ ५ ॥ हरिहर ब्रह्मा खुदा स्वयंभु, पोते पोताने देखे। आतम ते परमातम साचो, बाकी सघळु उवेखे. ॥६॥ तपजप किरिया दीक्षा भिक्षा, आत्म ज्ञान वण छे काची; आत्मज्ञानथी मुनिपणुं छे, भव्यो रहेशो त्यां राची. ॥७॥ सकळ सूत्रनुं सार प्रकाश्यु, आत्मज्ञान वर साचुं; मत कदाग्रह तेथी टळशे, ते वण भणतर सहु काचुं ॥ ८ ॥ म्हारे तो चिन्तामाणि फळीयो, आत्मज्ञान घट परखायं बुद्धिसागर अनेकान्त नय, समजी म्हार में पायुं.
॥ ब्रह्मचर्य ॥ पर परिणतिथी न्यारा रहेवे, निश्चयथी ते ब्रह्मचारी निश्चयथी जे ब्रह्मचारिछ, तेनी जगमा बलिहारी.
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