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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કર स्याद्वादनयदृष्टि देखं वस्तुरूप साधुं भासे; 9 नाम कहूं तो नाम न तेनुं, गुरुगमथी ते परखाशे ॥ ६ ॥ अनुभव आव्यो ढळे न टाळ्यो, सिद्धबुद्ध हेतु थाशे; बाह्यभाव विसारी देतां, साचो अनुभव परखाशे. सत्ताथी छे सिद्ध समोवड, नवधा भक्तिथी पूजो; अकळकळा जगजीवननी छे, समजे तेहिज नहि बीजो. ॥८॥ परम महोदय शाश्वत लक्ष्मी, समय समय तेनो भोगी; बुद्धिसागर गावो ध्यावो, क्षायिक शाश्वतपद योगी. ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ७ ॥ तर्कवितर्क. ॥ १ ॥ तर्कवितर्क करो करोडो, चर्चार्थी मस्तक फोडो; अहंवृत्तिघोडा पर बेसी, मनमां आवे त्यां दोडो. विषय विचारो करो हजारो, पण आवे नहि भवपारो; दुनियानी खटपटमां खूंची, फोगट मानवभव हारो ॥ २ ॥ देह बंगलो जीव मुसाफर, अणधार्यो अन्ते जाशे; आंख मींचा कशुं न हाथे, पाछळथी तो पस्ताशे ॥ ३ ॥ स्वमाजेवी जगनी माया, पाणीमांना पडछाया; सगांसंबंधी मूकी जावं, स्त्री धन पुत्र अने काया ॥ ४ ॥ चेतो झटझट चेतो झटपट, छंडी दो दुनियाबाजी; बाह्यभावनी तृष्णा छोडी, अन्तरमा रहेशो राजी. मोहभावनी खटपट छोडी, आतमने सेवो ध्यावो; बुद्धिसागर शाश्वत लक्ष्मी, लेवानो मळीयो ल्हावो. ॥ ६ ॥ ॥५॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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