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॥६॥
चिद्घन तमाशुद्धता, शुद्ध ध्यानथी याय; 'तिरोभाव मिज ऋद्धिनी, आविर्भाव पमाय. जिनपद निमपदमा रह्यु, शाने शुद्ध जणाय; बुद्धिसागर जिनदशा, अन्तरमा परखाय.
॥७॥
गुरुश्रद्धा.
सद्गुरु श्रद्धा दुर्लभा, दुर्लभ भक्ति उदार; गुरुनी आज्ञा पाळवी, जेवी असिनी धार. ॥१॥ गुरु श्रद्धा भक्ति यकी, होवे मङ्गलमाल; सद्गुरु पदनी सेवना, टाळे सहु जंझाळ. ॥२॥ सद्गुरु वण ज्ञान ज नहि, गुरुवना नहि धर्मः सद्गुरुनी आराधना, टाळे सघळां कर्म. ॥३॥ गुरु कृपाथी ज्ञान छे, गुरु कृपाथी सुख; गुरु कृपाथी शान्ति छ, नासे सबळां दुःख. ॥ ४ ॥ सद्गुरुनी भक्ति यकी, पामे शिष्यो धर्म गुरु देवनी सेवना, आपे शाश्वत शर्म.. ॥५॥ गुरुदेव चिन्तामाणि, गुरुजी सूर्य समान; गुरु पूजा जे जन करे, ते पामे कल्याण. गुरुजी धर्माधार छे, गुरु आलम्बन सार; बुद्धिसागर सद्गुरु, ज्ञानी जगदाधार. ॥ ७॥
स्यादादमार्ग. स्वादाद दर्शन थकी, चेतन ज्ञान पमाय; षड्दर्शन सापेक्षता, त्यारे सर्व जणाय.
॥१॥
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