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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥६॥ चिद्घन तमाशुद्धता, शुद्ध ध्यानथी याय; 'तिरोभाव मिज ऋद्धिनी, आविर्भाव पमाय. जिनपद निमपदमा रह्यु, शाने शुद्ध जणाय; बुद्धिसागर जिनदशा, अन्तरमा परखाय. ॥७॥ गुरुश्रद्धा. सद्गुरु श्रद्धा दुर्लभा, दुर्लभ भक्ति उदार; गुरुनी आज्ञा पाळवी, जेवी असिनी धार. ॥१॥ गुरु श्रद्धा भक्ति यकी, होवे मङ्गलमाल; सद्गुरु पदनी सेवना, टाळे सहु जंझाळ. ॥२॥ सद्गुरु वण ज्ञान ज नहि, गुरुवना नहि धर्मः सद्गुरुनी आराधना, टाळे सघळां कर्म. ॥३॥ गुरु कृपाथी ज्ञान छे, गुरु कृपाथी सुख; गुरु कृपाथी शान्ति छ, नासे सबळां दुःख. ॥ ४ ॥ सद्गुरुनी भक्ति यकी, पामे शिष्यो धर्म गुरु देवनी सेवना, आपे शाश्वत शर्म.. ॥५॥ गुरुदेव चिन्तामाणि, गुरुजी सूर्य समान; गुरु पूजा जे जन करे, ते पामे कल्याण. गुरुजी धर्माधार छे, गुरु आलम्बन सार; बुद्धिसागर सद्गुरु, ज्ञानी जगदाधार. ॥ ७॥ स्यादादमार्ग. स्वादाद दर्शन थकी, चेतन ज्ञान पमाय; षड्दर्शन सापेक्षता, त्यारे सर्व जणाय. ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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