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स्याद्वादना ज्ञानथी, जाणे सहु परमार्थ स्याद्वादना ज्ञान वण, भटके मन वाह्यार्थ. ॥२॥ स्याद्वादना ज्ञानथी, हठ कदाग्रह त्याग; स्याद्वादना ज्ञानथी, प्रगटे मन वैराग्य. स्याद्वादना ज्ञान वण, तत्त्वग्रहे एकान्त; स्याद्वादना ज्ञान वण, कदी टळे नहि भ्रान्त. ॥ ४ ॥ स्याद्वादना बोधथी, नासे मिथ्या गर्व रत्नत्रयिनी साधना, ऋद्धि प्रगटे सर्व. सूक्ष्म तत्त्वना ज्ञान वण, अन्तरमा अन्धेर; सूक्ष्म तत्त्वना ज्ञानथी, चिदानन्दनी ल्हेर. रमवू आत्म स्वभावमा, वागे मङ्गलतूर; धुद्धिसागर ध्यानी, चिदानन्द भरपूर. ॥७॥
चिदानन्द ल्हेर घटमां. चिदानन्दनी ल्हेरो घटमां, केम पहुं हुं खटपटमां, बाह्य भावमां कदी न शान्ति, केम पहुं हुं लटपटमां. ॥ १॥ अन्तरमां शांति छे साची, श्रद्धा तेनी खरी ठरी.. चेतन गुणनी अनन्त लीला, अनुभवी में दील खरी. ॥२॥ स्थिरोपयोगे सुरता लागी, भूलाणी दुनियादारी; रंगायो अनुभवना रंगे, प्रगटी ज्योति जयकारी. ॥३॥ शान्तदृष्टिथी सघळे शान्ति, भास्यो अनुभव अन्तरमांक आतम ते परमातम पोते; भास्युं साधु भणतरमां. ॥४॥ लय लागी अन्तरमा प्यारी, अकळकळा प्रभुनी सारी; प्रगटयुं अजवाळु अन्तरतुं, नाटुं मिथ्यातम भारी. ॥५॥
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