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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३ आर्तध्यानने रौद्रध्यानने, त्यागी धर्मने धरीएरे; शुक्लध्यानथी केवल पामी, शिवमंदिर संचरीएरे. वर्त० ॥७७॥ दुनियानो भय त्यागी धर्मे, भाव थकी धसमसीएरे; दुनिया शुं कहेशे भय राखे, मोह थकी नहि खसीएरे. वर्त० ॥ ७८ ॥ सगुणवीर्य प्रशे, साहसथी शिव मळशेरे; साहसगुणथी धर्म पन्थमां, वळतां दुःखो टळशेरे. वर्त० ॥ ७९ ॥ आत्ममेमथी चेतन मळशे, अभिमान झट गळशेरे; सर्व जगत्ने कुंटुंब सरखं, माने सुखडां मळशेरे. वर्त० ||८०|| परना दोषो कदी न देखो, दोष दृष्टिथी दोषीरे; सद्गुण दृष्टिथी गुण लेतां, बनशो निजगुण पोषीरे. वर्त० ॥८१॥ अपकारि दुर्जनने देखी, करुणा दिलमां लावोरे; उच्चभावधी सज्जन मोटा, चेतन प्रेम जगावो रे. वर्त० ।। ८२ ॥ औदयिक दृष्टिथी देखोतो, जगत् लागशे भूईरे; सद्गुण दृष्टिथी देखोतो, जगत् लागशे रुडुरे, वर्त० ॥ ८३ ॥ टीपे टीपे सर : भरातुं, उच्च भावना एवी रे, हळंव हळवे उच्च कोटीमां, वृत्ति क्षण क्षण देवीरे. वर्त० ।। ८४ ।। आत्मभावधी उच्च सदा हूं, घरमां के जंगलमां रे; वर्त० ||८६|| एवी रटना अंतर रटशो, भाव प्रभु मंगलमां रे. वर्त० ||८५ || शुद्ध स्वभावे सहुथी मळवु, भजन प्रभुनुं करवुं रे; अंतरना उपयोगे रहें, गुरु चरण अनुसरखं रे. अनेक जननी सोवत थातां, मोह पाश नव पडवं रे; क्रोधावेशाने झट त्यागी, वचन वदो नहि कडवं रे. वर्त०॥ ८७ ॥ दुःख समयमां अंतरथी झट, सुख भावना भावो रे; टळशे दुःखो मळशो सुखो, वर्तमान ल्यो ल्हावो. रे वर्त० ||८८|| उच्च भावथी. क्लेशज टळशे, ज्यां त्यां शांति प्रसरशे रे; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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