________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृक्षोद्भव जेम बीज थकी तेम, उच्चाशय बलिहारीरे. वर्त० ॥६॥ सोहं सोहं उच्च भावना, तत्वमसि पण प्यारीरे; अर्थ विचारी समजी सेवो, शुद्ध धारणा धारीरे. वर्त० ॥६६॥ जेवा जेवा मन विचारो, तेवा छे उच्चारोरे; विचार सरखा छे आचारो, समजी तत्त्वने धारोरे. वर्त० ॥६६॥ उच्च भावना उत्तम करशे, दोषो सर्व प्रणाशेरे उच्च भावना उत्तम भक्ति, प्रभु समो जीव थाशेरे. वर्त० ॥६॥ सिद्ध समो हुं त्रण कालमां, पर पुद्गलथी न्यारोरे वर्तमानमां शुद्ध भावना, टाळे कर्म विकारोरे. वर्त० ॥१८॥ मन वचन कायाथी न्यारो, शुद्धरुप जयकारीरे; वर्तमानमा उच्च भावना, आपे शिव सुख भारीरे. वर्त० ॥६९॥ रत्नत्रयीनो स्वामी भोक्ता, निर्मल निजगुण कतारे; परम शुद्ध निरंजन योगी, परपरिणतिनो हीरे. वर्त० ॥७॥
औदयिक भावो मुजथी न्यारा, अनंत सुखनो भोगीरे; निजगुण योगी कर्म वियोगी, नहीं शोकी नहि रोगीरे. वर्त०॥७॥ चिदानंदनो भोक्ता हुँ छ, शुद्ध भावना उंचीरे; परम प्रभुने प्राप्त थवामा, ए छे साची कुंचीरे. वते ॥७२॥ पुरुषोत्तम चेतननी व्यक्ति, करतां साची भक्तिरे; अहावीश लब्धि घट प्रगटे, वर्तमानमा युक्तिरे. वर्त० ॥७३।। वर्तमानमा उद्योगी जन, प्रगट करे बहु शक्तिरे; वर्तमानमां अंतर वर्तों, उच्च थवानी युक्तिरे. वर्त० ॥ ७४ ॥ दया क्षमाने तप संयममा, उच्च भावना सारीरे; पुद्गलवस्तु इच्छा टाळी, थाशो परोपकारीरे. वर्त० ॥ ७५ ॥ परना सारामां निज सारु, उत्तम बुद्धि राखोरे वर्तमानमा शुद्ध परिणतिथी, अनुभव अमृत चाखोरे. वर्त० ॥७॥
For Private And Personal Use Only