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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९॥ भाव वीर्य निजमां भळ्युं, वाग्युं जितनगारुं; फरक्यो विजयनो वावटो, क्षायिक सुख सारं. आनंदमंगळ जीवमा, ज्ञान दिनमणि प्रगव्यो; दर्शनचंद्र प्रकाशीयो, तव मोहज विघटयो. अनंतगुण पर्यायनो, जीव भोगी सवायो बुद्धिसागर मंदिरे, चेतन झट आयो. ॥ १० ॥ ॥११॥ "कलश" ओछव रंग वधामणां, प्रभु पासने नामे-ए राग. चोवीश जिनवर भक्तिी , गाया गुण रागे; गाशे ध्याशे जे प्रभु, ते अन्तर जागे. अन्तरना उद्योतथी, होय मंगळ माळा; मनमंदिर प्रभु आवतां, टळे मोहना चाळा. जिनभक्ति निज रुप छे, चेतन उपयोगी; अनंतगुणपर्यायनो, समये होय भोगी. झळहळ ज्ञाननी ज्योतिमां, जड चेतन भासे; चेतन परमेष्ठी सदा, एम ज्ञानी प्रकाशे. ॥४॥ चेतननी शुद्ध भक्तिथी, शुद्ध चेतन पर अनेकान्तनय दृष्टिथी, प्रभु गाइने हरखं. ॥५॥ संवत ओगणीस चोसठे, पुनम दिन सारो; अषाड शुक्ल पक्षमां, गाम माणसा धारो. सोमवार चढता दिने, चोवीस जिन गाया; अन्तरना उपयोगथी, सत्य आनंद पाया. ॥७॥ सुखसागर गुरु प्रेमथी, बुद्धिसागर गावे; गाशे ध्यावशे जे भवी, ते शिवमुख पावे. 1॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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