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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ विंशति विहरमान जिनस्तवन प्रारंभ. ___॥ १ ॥ श्री सीमंधर जिन स्तवन-राग उपरनो. सीमंधर जिन रूपमा, हुं तो रहियो राची; भाव कर्मने टाळवा, शुद्ध परिणति साची. भाव कर्मना नाशथी, द्रव्य कर्म टळे छ नायक मरवाथी यथा, सैन्य पार्छ वळे छे. ॥२॥ राग द्वेष भाव कर्म छ, द्रव्य कर्म ग्रहावे; राग द्वेष टळवा थकी, द्रव्य कर्म न आवे. निश्चय शुद्ध चरित्रथी, राग द्वेष टळे छ । राग द्वेष टळवा थकी, निज लक्ष्मी मळे छे. ॥४॥ चेतन शुद्ध स्वभावमां, लीनता क्षण थावे; त्यारे सहजानंदनो, अनुभव मन आवे. ॥५॥ क्षयोपशम ज्ञाने करी, प्रभु श्रेणि चढियो; शुक्ल ध्यान महा शस्त्रथी, मोह साथै लाढियो. जय लक्ष्मी अंगी करी, नव रुद्धि पायो बुद्धिसागर ध्यानथी, प्रभु अंतर आयो. ।।७॥ अथ २ युगमंधर जिन स्तवन. थांपरवारी वाल्हमा काबील मतजाजो-ए राग. युगमंधर जिन सेवना, मुज मनमां मीठी; स्याद्वाद दृष्टि थकी, जिन सेवा में दीठी. ॥१॥ जेवू तारु रूप छे, सेवा पण तेवी; योगातीतनी सेवना, योगथी केम कहेवी. ॥२॥ लेश्वातीतनी सेवना, लेश्याथी न थाशे; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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