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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुज मुज अंतर भागशे, संयम गुण युक्ति क्षेत्र भेदने टाळीने, मुख लहिशुं मुक्ति, मुक्तिमा मळगुं प्रभु, एम निश्चय धार्यो; ध्याने रंग वधामणां, मोह भाव विसार्यो. तुज संगी थइ चेतना, शुद्ध वीर्य उल्लासी ? बुद्धिसागर जागीयो. चेतन विश्वासी. ॥६॥ ॥७॥ २४ अथ श्री महावीर जिनस्तवनम् राग उपरनो. त्रिशलानंदन वीरजी, मनमंदिर आवो, भाव वीरता माहरी, प्रभु प्रेमे जगावो. ॥१॥ भाव वीर संचारथी, प्रभु मोह न आवे; द्रव्यवीर संचारमा, मोहनुं जोर फावे. ॥२॥ च्यार निक्षेपे ध्याइए, भाव वीर्यना धारी; समकित गुण ठाणा थकी, प्रभो तुं संचारी. भाव वीर्य प्रगटाववा, आलंबन साचुं; क्षयोपशम क्षायिकमां, मन मारु राच्यु. क्षयोपशमे ते हेतु छे, क्षायिक गुण काज; क्षायिक वीर्यता आपीने, राखो मुज लाज. असंख्य प्रदेशे क्षायिक, भाव वीर्य अनंत; योग ध्रुवता धारीने, लहे वीर्यने संत. मति संगी पुद्गळ विषे, जे वीर्य कहातुं; योगतणी ध्रुवता थकी, ध्याने लेश न जातुं. ॥७॥ भाव वीर प्रभु आतमा, अंतर् गुणभोगी; लघुता एकता लीनता, साधनथी योगी. For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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