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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगम युक्ति विचारे सायुं, समनो विश्वावीसरे.. कुं० ॥ ५ ॥ पर पुद्गळ करता नहि इश्वर, सिद्ध बुद्ध निर्धाररे; स्वाभाविक निजगुणना कर्ता, इश्वर जग जयकाररे. कुं० ॥६॥ चेतन इश्वर थावे सहेजे, ध्यान करी एक रुपरे, बुद्धिसागर इश्वर पूजो; चिदानंद गुण भूपरे. कुं० ॥ ७ ॥ १८ अथ श्री अरनाथ जिन स्तवन. ___ श्रीरे सिद्धाचण भेटवा-ए राग. श्री अरनाथजी वंदीए, शुद्ध ज्ञान प्रकाशी; जड चेतन भेद ज्ञानथी, टळे सकळ उदासी. श्री अ० ॥१॥ संग्रहनय एकान्तथी, एक सत्ता माने; सर्व जीवनो आतमा, एक दील पिछाणे. श्री अ० ॥ २ ॥ व्यवहारनय विशेषथी, व्यक्ति बहु देखे; व्यक्ति विना सत्ता कदी,कोइ नजरे न पेखे. श्री अ० ॥ ३ ॥ सामान्यने विशेषनी, एक द्रव्ये स्थिति व्यक्ति अनंता आतमा, अनेकान्तनी रीती. श्री अ० ॥ ४ ॥ माया पुद्गळ भावथी, छती शास्त्रे भाखी; चैतन्य भावे जाणजो, माया अछती दाखी. श्री अ०॥५॥ एकान्ते मिथ्या सदा, नित्यादिक भावा; बुद्धिसागर धर्म छे, स्याद्वाद स्वभावा. श्री अ०॥६॥ १९ अथ श्री मल्लिजिन स्तवनम्. हे सुखकारी आ संसार थकी जो मुजने उद्धरे-ए राग. उपयोग धरी मल्लि जिनेश्वर प्रणमी शीव सुख धारीए; तजी बाह्य दशा शुद्ध रमणता योगे कर्म निवारीए. (टेक ) For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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