SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ अथ श्री शान्ति जिन स्तवन. राग केदारो. शान्ति जिनेश्वर अलख अरुपी, अनन्त शान्ति स्वामीरे; निराकार साकार दो चेतना, धारकछो निर्नामीरे. शां० ॥ १ ॥ परम ब्रह्मस्वरुपी व्यापक, ज्ञानथकी जिनरायारे; व्यक्तिथी व्यापक नहि जिनजी, प्रेमे प्रणमुं पायारे. शां० ॥२॥ आनंदघन निर्मळ प्रभु व्यक्ति, चेतन शक्ति अमंतिरे; स्थिरोपयोगे शुद्ध रमणता, शान्ति जिनवर भक्तिरे. शां० ॥ ३ ॥ कर्म खर्याथी साची शान्ति, चेतन द्रव्यनी प्रगटेरे; शान्ति सेवे पुद्गळथी झट, चेतन रुद्धि वछूटेरे. शान्ति० ॥ ४॥ चउ निक्षेपे शान्ति समजी, भाव शान्ति घट धारोरे; बुद्धिसागर शान्ति लहीने, जल्दी चेतन तारोरे. शान्ति० ॥५॥ १७ अथ श्री कुंथुजिन स्तवन. राग केदारो. कुंथु जिनेश्वर करुणानागर, भावदया भंडाररे; चिदानंदमय चेतन मूर्ति, रुपातीत जयकाररे. कुंथु० ॥ १ ॥ प्रण भुवननो कर्त्ता ईश्वर, कर्ता वादी पक्षरे; सृष्टि कर्ता नही छे इश्वर, समजावे जिन दक्षरे. कुं० ॥२॥ निमित्तथी का इश्वरमां, दोषो आवे अनेकरे; विना प्रयोजन जगनो कर्ता, होय न इश्वर छेकरे. कुं० ॥३॥ सृष्टि कार्य तो हेतु उपादान, कोण कहो मुविचारोरे; उपादान इश्वरने माने, दोष अनेक छे भारीरे. कुं० ॥ ४॥ सृष्टिरुप इश्वर ठरला तो, जड़ रूप थयो इशरे; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy