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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु मुज सत्ता छे तुज समी, निर्मळ व्यक्ति मुज चित्त रमी; ते अशुद्ध परिणति तुर्त दमी. उपयोग० ॥ १ ॥ निज भाव रमणता रंगाशें, अंतर्यामी प्रभुने गारों; प्रभु व्यक्ति समा अन्तर थाशुं. उपयोग० ॥२॥ चेतनता निजमां रंगाशेः प्रभु तुज मुज अंतर झट जाशे; सहजानंदी चेतन थाशे. उगयोग० ॥ ३॥ प्रभु वस्तुधर्म तन्मय थावं, मुज सत्ताधर्म प्रगट पाएँ गुणठाणे गुण सहु निपजावं. उपयोग० ॥ ४ ॥ प्रभुध्याने शुद्धदशा जागे, वेगे जयडको जग वागे; बुद्धिसागर जिनवर रागे. उपयोग० ॥ ५ ॥ २० अथ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनम्. श्री संभवजिन राजजीरे, ताहरूं अकळ स्वरुप जिनवर पूजो-ए राग. मुनिसुव्रतजिन ताहरुरे, अलख अगोचर रूप. मनमां ध्या; असंख्यप्रदेशी आतमारे, परमेश्वर जग भूप, मनमा० ॥१॥ ध्यावु ध्यावूरे अनुभवयोगे, शुद्धध्याने ध्येयस्वस्वरूप मन० द्रव्य क्षेत्र काल भावीरे, चेतन व्यक्ति शुद्ध. मनमां० परद्रव्यादिक नास्तितारे, क्षायिक केवळ बुद्ध. मन० ॥२॥ सादि अनंति भंगीथीरे, पाम्या परमानन्द.. मन. प्रदेश प्रदेश प्रतिज्ञानमारे, भासे ज्ञेय अनंत. मन० ॥ ३ ॥ परद्रव्य पर्यायानंतनुरे, एक प्रदेश करे तोल मन० एक समयमा ज्ञानथीरे, चेतन द्रव्य अमोल. मन० ॥ ४ ॥ पर पुद्गळ दूरे करीरे, थया प्रभु कृतकृत्य. मनमा० चेतन व्यक्ति समारवारे, तुज आलंबन सत्य. मन० ॥ ५ ॥ त्रियोगे प्रभु आदर्योरे, अनंतशक्ति नाथ, मन० For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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