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आत्मस्वभाव जागजे, दुनियाने विसारी; निद्रा तन्द्रा परिहरी, कर तुं निजगुण यारी. जाग० ॥॥ दुनिया दशामां जे जागती, बोले खावे ने पीवे; योगी दशामां ते उंघतो, आत्म जागृति जीवे. जाग० ॥५॥ अनन्त शक्ति प्रकाशतो, ज्यारे चेतन जागे; मिथ्या परिणति बापडी, त्यारे दूरे भागे. जाग० ॥६॥ छति पर्याय अनन्त छे, निजगुणना सदाय; सामर्थ्य पर्यायनी, अनन्तता कथाय. जाग० ॥७॥ परमानन्दनी ल्हेरियो, भोगवतां विलासी; बुद्धिसागर सेवना, सिद्ध बुद्ध प्रकाशी; . जाग० ॥८॥
संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन. संखेश्वर पार्श्वनाथजी, विघ्न वृन्द निवारे; धरणेन्द्र पद्मावती, वंछित सहु सारे. संखेश्वर० ॥१॥ अश्वसेन कुल दिनमणि, वामानन्दन प्यारा क्षायिक नव लब्धि धणी, सिद्ध बुद्धावतारा. संखे ॥२॥ अजरामर अरिहंत छो, विश्वानंद विलासी; अजरामर निर्मल प्रभु, शुद्ध तत्त्व प्रकाशी. संखे० ॥३॥ उत्पत्ति व्यय ध्रुवता, समये समये भोगी; सादि अनंतु पद वद्यु, क्षायिक गुण योगी. संखे ॥४॥ पुरुषोत्तम सर्वज्ञ छो, शुद्ध चैतन्य धारी अष्ट सिद्धि सुख ऋद्धिनो, दाता जयकारी. संखे०॥ ५ ॥ चिंतामणि तुज मंत्रथी, पामी मंगल माला; बुद्धिसागर पूजतां, लीला हेर विशाला. संखे० ॥ ६ ॥
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