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धन्य दीवस.
धन्य दीवस क्षण धन्य छे, प्रगटयो अपूर्व आनन्दरे;
अनुभव अमृत पानथी, टळ्यो विषयनो फन्दरे. धन्य० ॥ १ ॥ आत्मतत्व उद्योतथी, अज्ञान दूर हटायुंरे;
अनुभव श्रुत वधती दशा, पूर्णानन्द पद घ्यायुंरे. धन्य० ॥ २ ॥ अजरामर निर्मल प्रभु, परम समाधिमा दीठारे;
धन्य० ॥ ६ ॥
वचनातीत अखंड अज, चिदानन्द रस मीठारे, धन्य ॥ ३ ॥ स्वयं देख्यो जाणीयो, स्वयं रूपनो दृष्टारे; षट्कारक स्वामी सदा, आविर्भावनो सृष्टारे. परम प्रभुता पारखी, मगटी शान्ति अपूर्वरे; वीर्योल्लासनी वृद्धिथी, विणश्यो मिथ्या गर्वरे. साक्षित्व परनुं रं, नहि परकर्त्ता भोक्तारे; ज्ञानादिक ऋण रत्ननो, अन्तर्दृष्टिथी योक्तारे. अन्तर्मुख वृत्ति वळी, साची शान्ति प्रकाशीरे; पुद्गलथी प्रेम उठियो स्थिरता घटमां वासीरे धन्य० ॥ ७ ॥ निश्चय चेतन रामनो, सम्यग् ज्ञाने कीधोरे; मिन करी परद्रव्यथी, चेतन ज्ञानमां लीधोरे. परम समाधि स्वरूपस, वेदनी वेदीने रहीगुंरे योग्यजनोनी आगळे, तत्त्वनी वातो कहीशुंरे. श्रुत वाणी अवलंबीने, आतम अनुभव पायोरे; बुद्धिसागर शान्तिमां, परम प्रभु परखायो रे.
सन्त महिमा.
शान्ति अर्षे सन्तजन, परम कृपाना नाथ: धर्म बोध दाता गुरु, सेवक करे सनाथ.
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धन्य० ॥ ४ ॥
धन्य० ॥ ९ ॥
धन्य० ॥ ८ ॥
धन्य० ॥ ९ ॥
धन्य० ॥ १० ॥
॥ १ ॥