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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ धन्य दीवस. धन्य दीवस क्षण धन्य छे, प्रगटयो अपूर्व आनन्दरे; अनुभव अमृत पानथी, टळ्यो विषयनो फन्दरे. धन्य० ॥ १ ॥ आत्मतत्व उद्योतथी, अज्ञान दूर हटायुंरे; अनुभव श्रुत वधती दशा, पूर्णानन्द पद घ्यायुंरे. धन्य० ॥ २ ॥ अजरामर निर्मल प्रभु, परम समाधिमा दीठारे; धन्य० ॥ ६ ॥ वचनातीत अखंड अज, चिदानन्द रस मीठारे, धन्य ॥ ३ ॥ स्वयं देख्यो जाणीयो, स्वयं रूपनो दृष्टारे; षट्कारक स्वामी सदा, आविर्भावनो सृष्टारे. परम प्रभुता पारखी, मगटी शान्ति अपूर्वरे; वीर्योल्लासनी वृद्धिथी, विणश्यो मिथ्या गर्वरे. साक्षित्व परनुं रं, नहि परकर्त्ता भोक्तारे; ज्ञानादिक ऋण रत्ननो, अन्तर्दृष्टिथी योक्तारे. अन्तर्मुख वृत्ति वळी, साची शान्ति प्रकाशीरे; पुद्गलथी प्रेम उठियो स्थिरता घटमां वासीरे धन्य० ॥ ७ ॥ निश्चय चेतन रामनो, सम्यग् ज्ञाने कीधोरे; मिन करी परद्रव्यथी, चेतन ज्ञानमां लीधोरे. परम समाधि स्वरूपस, वेदनी वेदीने रहीगुंरे योग्यजनोनी आगळे, तत्त्वनी वातो कहीशुंरे. श्रुत वाणी अवलंबीने, आतम अनुभव पायोरे; बुद्धिसागर शान्तिमां, परम प्रभु परखायो रे. सन्त महिमा. शान्ति अर्षे सन्तजन, परम कृपाना नाथ: धर्म बोध दाता गुरु, सेवक करे सनाथ. For Private And Personal Use Only धन्य० ॥ ४ ॥ धन्य० ॥ ९ ॥ धन्य० ॥ ८ ॥ धन्य० ॥ ९ ॥ धन्य० ॥ १० ॥ ॥ १ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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