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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६ ॥ ममता हेतु दुश्मन बहु छे; ममता जन्ममरण खाणी ॥ ५ ॥ ममता मोह अरिनी बेटी, महाडाकिनी दुःखकारी; ममतानुं अंधारं मोडं, समजो मनमां नरनारी. आधि उपाधि व्याधि ममता, पुत्र पुत्री जननी बापा; तनमां ममता धनमां ममता, ममताना ज्यां त्यां छापा ||७|| कुगुरुधर्म कुदेव ममता, वंशपरंपरनी ममता; ममतामां बुडेली दुनिया, ममताना त्यागे समता. युद्ध भयंकर ममता योगे, सगपण सहु ममता योगे; ममतानो मोटो छे दरियो, ममता छे कुमति ढोंगे. आशा तृष्णा ममता त्यागी, समताथी सन्तो जागे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर प्रगटे मन बैराग्ये. ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ ॥ १० ॥ परमबोध. देव गुरुनी श्रद्धा पक्की, भव्यजनो प्रेमे राखेः सुश्रद्धाना धारक जीवो, अनुभवामृतरस चाखे. श्रद्धाथी संयम प्रगटे छे, भव्यपणुं श्रद्धा योगे; श्रद्धा भक्ति प्रगटे छे, सत्य ज्ञान श्रद्धायोगे. पद् स्थानकनुं ज्ञान थयाथी, सुश्रद्धा समकित प्रगटे; जब चेतननो भेद पडे छे, अनन्त मिथ्यातम विघटे ॥ ३ ॥ जीani जीवपणुं भासे ने, अजीवमां जडता भासे; जडनो कर्ता नाही पण साक्षी, अज्ञपणु त्यारे भासे ॥ ४ ॥ भूत कर्मनो कर्त्ता चेतन, वर्तमान तेनो भोक्ताः भोक्ता साक्षित्व समभावे, नवीन कर्मनो नहि योक्ता ॥ १ ॥ भ. व कर्म जे रागद्वेष छे, तेनी उपशमता होवे; For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ २ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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