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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ફ્યું आत्मबोध. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मज्ञानने उच्चभावथी, पर पुद्गलनो नहि कर्त्ता; साक्षित्व तेनुं छे बाकी, आश्रवभाव तणो हर्ता. ॥ १ ॥ देह वचन मननो हुँ साक्षी, जाणुं पण परिणमनुं नही; उपश्रम क्षयोपशम साधनथी, क्षायिक सिद्धि कर्ता सहि. ॥ २ ॥ अन्तरदृष्टि अमृत दृष्टि, प्रगटावे निजगुण सृष्टिः चिदानन्दनी ल्हेरो प्रगटे, प्रगटे चेतन गुणव्यष्टि. बाह्य भावमां सुख न भास्युं, अन्तरमां सुखनी केलि; आपस्वरूप प्रगटे शान्ति, महानन्दवर्षा हेली. ॥ ३ ॥ || 8 11 ॥ ६॥ || 9 || आत्म भावमां सुरतालागी, अन्तरदृष्टि घट जागी; निजपदमां रंगायो रागी, बाह्य भावधी वैरागी. स्वरुप म्हारु शोधी लीधुं, निजधनतो निजने दीधुं अनुभवामृत प्रेमे पीधुं, मनुष्यभव जीवन सिध्युं. अरूप अजरामर अविनाशी, चिदघन चेतन विश्वासी : गुणपर्याय विलासी सोहं, तत्वमसिध्याने वासी. आवागमन गर्मन पुद्गलनुं, पुद्गलयोगे चेतननुं चेतनशक्ति स्वयं प्रकाशे, त्यारे चाले नहि मननुं. टळे विकल्पोने संकल्पो, आत्मभावमां परिणमत; परपरिणमता ढळे छे त्यारे, निज परिणमता उद्भवतां ॥ ९ ॥ गुणस्थानक निस्सरणि चढतां योगी अमृत रसभोगी; बुद्धिसागर परिपूर्णता, क्षायिकभावे गुणयोगी. 9 ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only 119 11 ॥ ८ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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