________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०७
तत्त्वज्ञान.
अत्यंत नाश न वस्तु कोइनो, वस्तु विनाशी पर्याये; अगुरुलघुथी हानि वृद्धि, समयविषे द्रव्ये थावे. अचिंत्यशक्ति अगुरुलघुनी, केवलज्ञानी ते देखे; उत्पत्ति व्यय ध्रुवता त्रिपदी, षड् द्रव्योमां जिन पेखे || २ || सर्ववस्तु पर्याये विनाशी, द्रव्यपणे ते अविनाशी;
"
कालमां तजे न ध्रुवता, अनाद्यनन्तपणे वासी अनेक आकारो धारे पण, मूळरुपने नहि छोडे; द्रव्यपणुं ते शाश्वत भाख्युं, समजे जे गुरुगम जोडे. ॥ ४ ॥ ध्रुवता समये उत्पत्ति व्यय, उत्पत्ति समये व्ययता; व्यय समयमा उत्पत्ति छे, व्यय समयमां अक्षरता. द्रव्यगुण पर्याय विषयमां त्रिपदीनो अवतार थतो; अनेक मंगो ज्ञाने देखी, ज्ञानी अन्तरमांहि जतो. हेय ज्ञेयने उपादेयता, विवेकथी समजो ज्ञाने; उपादेय चेतनने समजी, पडो न पुद्गल तोफाने. जीव पर्यायनो तिरोभाव जे, तेनो आविर्भाव करो; जीव द्रव्यपर्याय शुद्धिं ते, सिद्ध बुद्धता चित्त धरो. ॥ ८ ॥ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकथी, नित्यानित्य विचार करा; पद्रव्यामां सदाय समजी, स्याद्वादशासन मन धरो ॥ ९ ॥ अष्टपक्षी वस्तु विचारी, अन्तरमां उपयोग घरो; बुद्धिसागर गुरुगम ज्ञाने, अनन्त चेतन शक्ति वरो. ॥ १० ॥
For Private And Personal Use Only
11 ? 11
॥ ३ ॥
114 11
॥ ६ ॥
11 99 11