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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०४ योगविषय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्हारो बालुडो सन्यासी - ए राग. योगी ० योगी ०॥ १ ॥ योगी ० ॥ २ ॥ योगी ० ॥ ३ ॥ योगी ०|| ४ | योगी देहदेवळनो वासी, वैरागी सन्यासी. यमनियम आसन करी सिद्धि, प्राणायाम अभ्यासी; रेचक पूरक कुंभक साधी, केवळ कुंभकवासी. द्रव्यभाव बेभेद प्राणायाम, कुंडली शक्ति उजाशी; मूलद्वारथी मेरुदंडनो, अवघट मार्ग प्रकाशी. प्रत्याहार धारणा धारी, चमत्कार बतलावे; षट्चक्रोनभेदी प्रणवे, ब्रह्मरन्ध्रमां आवे. शून्यशिखर पर साहिबवासा, होवे त्यां थिरवासा; आपस्वरूपे आपप्रकाशे, उज्ज्ल ध्यानाभ्यासा. प्रगटे चेतन सुखनीलाली, मुख प्रफुल्ल सुख छाया; सालंबन निरालंबनध्याने, चेतन निजघर आया. योगी ० ॥ ५ ॥ लागी समाधि टळी उपाधि, ज्योति ज्योत मिलावी; चिदानंदमां हंसाखेले, परमप्रभुता पांवी. क्षयोपशमां आत्मभान एक, बाकी भान न होवे; क्षायिकभावे केवलज्ञाने, लोकालोकने जोवे. क्षयोपशममा चेतन अद्वैत, क्षायिक सर्व प्रकाशे; बुद्धिसागर सापेक्षाथी, समजे साधुं भासे. योगी० || ६ || योगी० ॥ ७ ॥ योगी ०|| ८ ॥ मनःशक्ति. मन मुक्ति ने मन संसार, मन थंड ने मन हुशियार; मन तारु ने मन अवतार, मन नपुंसक मन नरनार. मन माता ने मन छे भाइ, मन वियोगी दील सगाइ; For Private And Personal Use Only 03.01
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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