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योगविषय.
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म्हारो बालुडो सन्यासी - ए राग.
योगी ०
योगी ०॥ १ ॥
योगी ० ॥ २ ॥
योगी ० ॥ ३ ॥
योगी ०|| ४ |
योगी देहदेवळनो वासी, वैरागी सन्यासी. यमनियम आसन करी सिद्धि, प्राणायाम अभ्यासी; रेचक पूरक कुंभक साधी, केवळ कुंभकवासी. द्रव्यभाव बेभेद प्राणायाम, कुंडली शक्ति उजाशी; मूलद्वारथी मेरुदंडनो, अवघट मार्ग प्रकाशी. प्रत्याहार धारणा धारी, चमत्कार बतलावे; षट्चक्रोनभेदी प्रणवे, ब्रह्मरन्ध्रमां आवे. शून्यशिखर पर साहिबवासा, होवे त्यां थिरवासा; आपस्वरूपे आपप्रकाशे, उज्ज्ल ध्यानाभ्यासा. प्रगटे चेतन सुखनीलाली, मुख प्रफुल्ल सुख छाया; सालंबन निरालंबनध्याने, चेतन निजघर आया. योगी ० ॥ ५ ॥ लागी समाधि टळी उपाधि, ज्योति ज्योत मिलावी; चिदानंदमां हंसाखेले, परमप्रभुता पांवी. क्षयोपशमां आत्मभान एक, बाकी भान न होवे; क्षायिकभावे केवलज्ञाने, लोकालोकने जोवे. क्षयोपशममा चेतन अद्वैत, क्षायिक सर्व प्रकाशे; बुद्धिसागर सापेक्षाथी, समजे साधुं भासे.
योगी० || ६ ||
योगी० ॥ ७ ॥
योगी ०|| ८ ॥
मनःशक्ति.
मन मुक्ति ने मन संसार, मन थंड ने मन हुशियार; मन तारु ने मन अवतार, मन नपुंसक मन नरनार. मन माता ने मन छे भाइ, मन वियोगी दील सगाइ;
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