________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मन वाडी ने मन ठकुराइ, मन व्यापारी चित्त ठगाइ. ॥२॥ मन आवे ने मनडु जाय, मन रोवे ने मन हरखाय; मन म्हाले ने मन गभराय, सारा खोटामां मन जाय.।। ३ ।। मन दोडे ने मनडे स्थिर, मनहुँ भोगी ने मन धीर; मन शोकीने दोलफकीर, मन जीते ते जगमां वीर. ॥ ४ ॥ मन ज्ञात ने मन छे जात, मनथी धावे छे परधात मन मर्कटने मन छे भ्रात, मन पिता ने मन छे त्रात.॥ ५ ॥ मनथी राजा मनथी रंक, मन शंकी ने मन निःशंक; रागी द्वेषी मनहुं पंक, मन काशी ने मनडुं लंक. ॥६॥ जेवू जेवू मनडुं थाय, तेवारुपे मन कहेवाय; आर्तरौद्र पण मनडुं ध्याय, धर्मध्यान मनथी ध्यावाय।। ७ ॥ विचित्र मननी बाजी कही, ज्ञानियोए ते मन सद्दही बुद्धिसागर समता वही, मन जीते योगे गहगही. ॥ ८ ॥
एक जिज्ञासुपर लखेलो बोध. देह छतां जेनी दशा, वर्ते शरीर भिन्न व्यवहारे व्यवहारमा, निश्चय स्वरूप लीन. ॥१॥ संयम धारि सद्गुरु, व्यवहारे कहेवाय; निश्चयथी सहु माणिया, गुरुपणे सोहाय. ॥२॥ पंचांगीमा परखशो, मुनिवर सद्गुरु होय; गुरु गृहस्थी नहि कह्या, करो न संशय कोय. ॥३॥ अन्तरथी सद्गुण भर्यो, साधु वेष न होय; भद्रबाहु गुरु बोलिया, ते नहि सद्गुरु जोय. ॥ ४ ॥ पंचांगी साची कही, तेनुं ज्ञान जो थाय; दर्शन मोह वियोगथी, सपकित रत्न ग्रहाय. ॥५॥
For Private And Personal Use Only