________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०३ योग्य थयाथी उच्च कोटीमां, चेतन वेगे जई भळे. ॥५॥ गंभीर क्षमा दमादि सद्गुण, धारे तेने योग्य कहो; श्रद्धा भाक्त पक्वमतिजन, योग्य कह्यो मनमा सहहो. ॥६॥ सद्गुण दृष्टि जे जन धारे, शाश्वत सुख लीला पावे; बुद्धिसागर परम भक्तिथी, चेतन निज घरमा आवे. ॥ ७ ॥
सिद्धान्तवाणी. धर्म करे ते मुखिया जगमा, धर्म विना नहि मुख कदी; ज्ञान विना नहि गुरु कदापि, जल विना नहि होय नदी. ।। १ ।। दया बिना नहि धर्म कदापि, क्षमा विना नहि सन्तपणुं; गुरु विना नहि ज्ञान कदापि, समफितथी होय भव्यपणुं. ॥ २॥ धर्म कर्याथी पाप टळे छे, धर्म कर्याथी सुख शान्ति; .. धर्म कर्याथी उच्च जीवननी, वधती निशदिन बहु कान्ति.॥ ३ ॥ धर्म कर्याथी सुखनी लीला, धर्म कर्याथी दुःख टळे; अष्ट सिद्धि नव निधि प्रगटे, जे जोइए ते तुर्त मळे. ॥४॥ धर्म कर्याथी मनुष्य सुरगति, पंचमी गति पण थावे छे धर्मे जय पापे क्षय कहेणी, वर्धमान जिन गावे. छे. ॥५॥ धर्म मित्र सम कोइ न बंधु, धर्म पिता माता भ्राता; परभव जातां धर्म विना नहि, जाणो कोइ. रक्षण कर्ताः ॥ ६ ॥ अपूर्व महिमा धर्म मर्मनो, धर्म थकी जीवो तरिया; रत्नत्रयिनी लक्ष्मी पामी, अनंत जीवो सुख वरिया. ॥७॥ द्रव्यभाव बे भेद धर्मना, चउ निक्षेपे धर्म खरो सात नयोथी धर्म विचारो, समजी शाश्वत शर्म वरो. ॥८॥ गुरुगमथी करो धर्मकृत्यने, गुरुकृपाथी बहु ऋद्धि; बुद्धिसागर गुरुकृपाथी, परम गति शाश्वत सिद्धि.
For Private And Personal Use Only