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हुई लाला धुकयुक्त सोमवाले अपालाके मुखको अपने मुखसे चूसके सोमका सर्व रस पीया गया ? वेदांती साहब-तुम नहीं जानते, अपालाने भक्तिसें इंद्रको सो
मकी आमंत्रणा करी, और इंद्रने भक्तवश होके चगला
हुआ भी सोमरस पी लीया इसमें क्या दोष है ? उत्तर-तुमारा कोई भक्त, जो तुमको अत्यंत अच्छी लगती
होव ऐसी मिठाइ मुखमें चावके तुमको कहे कि, मेरे मुखसे मुख लगाके तुम यह मिठाइ चूसके पी लो, तो क्या तुम पी लोंगे ? नही. तो इंद्रने किस तरें चाल
पी लीनी? वेदान्त-इसका तात्पर्य तुम नहि जानते, इसका तात्पर्य यह
है कि, इंद्र भी ब्रह्मज्ञानी था, और अपाला भी ब्रह्मज्ञानीथी, इस वास्ते तिनके ज्ञानमें ब्रह्म विना अन्य कुछ भी नही था; इस वास्तेही तिसके मुखसे मुख लगाके सोमरस इंद्रने चूसा, ब्रह्मसें ब्रह्म मिल गया,
इसमें क्या दोष है ? उत्तर-इस कालमें कितनेक वेदान्ती परस्त्रीयोंसें भोग करते
हैं, तिन स्त्रीयोंकी मुखकी लाला चाटते ( चूसते ) हैं,
क्या वेभी ऐसा ब्रह्म एकत्व समझ करकेही करते होंगे? वेदांती-हा. उत्तर-तबतो माता, बहिन, बेटी के गमनकरने मेंभी कुछ दोष
__ नही होना चाहिए. वेदांती-है तो ऐसेंही, परंतु जगत् व्यबहार उल्लंघन करना न
चाहीए.
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