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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3१.) तिसको यह अपूर्व ज्ञान रससे भरा सूक्त दीना ! तिसमें पूर्वोक्त कथन होनेसे, वेद, अनादि अपौरुषेय कैसे सिद्ध हो सकता है ? और अपाला तो, ब्रह्मचारिनीथी, लिसको पिता शिर टट्टरी, ऊपर क्षेत्र, गुह्य स्थानो परिकेश न होन, इनकी चिंता क्यों हुई; क्योंकी, कि, तिसके ज्ञानमें तोये तीनों वस्तुयों माया (भ्रांति ) रूप होनेसे त्रिकालमें हैही नहीं; एक शुद्ध ब्रह्महीयी फिर, इंद्रको उद्देश्यके तपका हेको करती थी ? इंद्रभी तो मायाकी भ्रांतिरूप हीथा; जब अपालाने नदी ऊपरसें सोम लेके चर्वण करा, तिसके दांतोंका शब्द सुनके इंद्रने जाना कि, पत्थरोंसे सोमके पीसनेका यह शब्द है, इंद्रको ऐसी भ्रांति हुई क्या इंद्र महाराज स्वर्गके सुखोंको छोडके तिस जगे भटकता फिरता था ? तथा इंद्रको तो ऋग्वेदादिमें परमेश्वरकाही स्वरूप लिखा है तो, क्या ऐसे ज्ञानवान् इंद्रको अपालाके दांतोका शब्द पत्थरों 5 मालुम हुआ ? इसमें सिद्ध होता है कि, तुमारा माना वेदा काका वक्तः इश्वर भी ऐसाही ज्ञानवान् होगी-तथा पत्थरों से जगत्में सोमसही पीसते हैं ? अन्य नहीं ? जो सोमही पीसनेका शब्द है, अन्यका नही. तहां यज्ञ शालाभी नहीथी कि, जिससे सोम पिसनेकाही निश्चय होवे. ____ तथा अपाला ब्राह्मणी कोई ऊंटणीथी, वा राक्षणीथी ? कि जिसके दांतोका शब्द पत्थरोंक शब्द समान इंद्रको मालुम पडा ! क्या इंद्र भिक्षाचरोंकी तरें घर घरमें सोमरस पीता फिरता था ? और अपाला बडी क्या लायक थी ? कि जिसने अपने मुखमें चर्वण करी अपने मुखकी लाला और श्लेष्मयुक्त जुगुप्सनीय मलीन ऐंठी चगली हुई सोमकी निमंत्रणा इंद्रको करी ? इंद्र भी क्या तिस विना मरा जाता था ? जिससे पूर्वोक्त चावी For Private And Personal Use Only
SR No.008534
Book TitleAtma Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages113
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Karma
File Size6 MB
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