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आत्मा-हे कर्म ? तारुं सैन्य कयु कयु छ ? ते मने बताया
कर्म-मा सैन्य अत्यंत छे, क्रोध, मान, माया, लोभ, कलह, अदेखाइ, हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन आदि मारु सैन्य छे. .
भव्यात्मा-(सदगुरु पासे जइ विनयं सहीत) सद्गुरु महाराज! आपनी कृपाथी हवे मारे कर्म कटफनो नाश करवोछे.
सद्गुरु-हे भव्यात्मा! कर्मनी सत्ता बलवान छे, आत्मानी शक्ति प्रगटया विना कर्मनो नाश थतो नथी, कर्म एवं बलवान छे के, जे कर्मनो नाश करवा प्रयत्न करे छे, तेने कर्म उलटुं जीते छे ज्यारे वैराग्य हृदयमा प्रगटे अने सांसारिक वस्तुओ उपरथी ममता घटे, मोह उतरे, त्यार बाद कर्म जीतवा समर्थ थवाय छे.
भव्यात्मा-(वे हाथ जोडीने कहे छे) हे सद्गुरु महाराज ! कर्मनो नाश करी मुक्ति प्राप्त करवानो कृपा करी माग बतावो के जेथी जन्म जरा मरणादिनां दुःखो नाश पामे.
सद्गुरु-प्रथम तो देवगुरु धर्मनु स्वरुप जाणवू जोइए. अने त्यार वाद जिनोक्त कथित तत्वनी श्रद्धा करवी. अने मिथ्यात्वने परिहर, आटलुं कर्या वाद अन्य धर्म कृत्य सेवी शकाय छे.
भव्यात्मा-हे करुणानिये? देव गुरु धर्मर्नु स्वरुप समजावशो. . सद्गुरु-हे भव्यात्मा एकाग्र चित्तथी समिळ ! अष्टादश दोष रहित होय तेने देव मानवा, ते अढार दोपना नाम
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