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अने तेथी हे कर्म तेतारी संगति त्यागवा प्रयत्न करे छे. हे कर्म तु केटली जग्यामां रहे छे.'
कर्म हे आत्मा हुँ चौद राजलोकमां वसुं छं. सिद्धिस्थानमः पण निगोदीया जीवन हुं क्षीरनीर संयोगवत् वळगी पडयुं छं.
आत्मा - अरे तें सर्व जीवोने दुःख आप्युं तारी केटली निर्दयता ?
कर्म - पोतानी मेळे जीवो मारा विषे लपटाय छे, तेमां मारी शी कसूर ? मिथ्यात्व अविरति कषाय, योगथी हुं जीवने वळ कुं, माटे तेनो जे नाश करे छे तेनी संगति माराधी थती नथी. गांडो माणस अंगाराने हाथमां झाले, तेथी ते बळे, अने बुमो पाडे दुःखी थाय, तेमां अंगारानो शो वांक कहेवाय ? पोतानी भूल माटे बीजानी उपर केम क्रोध करवी जोइये, हे आत्मा तु पुल्लिंग थइने केम नपुंसकना हाथमां सपडायो छे ?
आत्मा - हे कर्म ! तुं हाल नपुंसक छतां मनें ताबे राखे छे, तेनुं कारणके हुं तारी संगति करवाथी नपुंसक सरखो 'बनी गयो छु, मारी शक्ति जागतां हुं ताबे रहीश नहीं.
कर्म - हे आत्मा ! जो के हुं नपुंसक छु तो पण मनें जीतवं मुश्केल छे. मारुं सैन्य एवं छे के तने जरा मात्र पण चकवा दे नहीं.
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