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ज्यारे शुद्ध गुरु द्वारा स्वभावानुगत थाय छे, त्यारे स्व शुद्ध स्वरुपने ओळखे छे. अने कर्मने दूर करवा प्रयत्न कर छे, जे कर्मना योगे-हाडकांवाळा, मांसथी भरेला, विष्टा अने मूत्रथी भरेला आ प्रत्यक्ष देखाता शरीरमां आत्माने रहे£ पडे छे. ज्यारे गमन करवानी मरजी थाय छे, त्यारे आलुं शरीर उपाडीने फरवु पडे छे, नाना बाळकनी तबीयतनी पेठे शरीरनी आरोग्यता माटे प्रयत्न करवा पडे छे.
आत्मा-अरे कर्म तुं केम मने वळग्युं छे ? में तारा शा अपराध कर्या छ ? के जेथी मने लागे छे.
कर्म-वाहरे वाह ! : आत्मा तमोए शुं मने ओळख्यु के ? मारो एवो स्वभाव छ के दरेक आत्माना असंख्याता प्रदेशे वळगी पडq. मारा उपर जे मित्रता राखे छे तेनाथी कदी हुँ दूर रहेतुं नथी, तो तमो माराथी मित्रताइ राखो छो तेथी शुं ? हुं तमाराथी दूर रहेवारों के ?
आत्मा-अरे कर्म, हुं तारी साथे मित्रता राखवा इच्छ तो नथी, तारी मित्रताइथी तो हुं चारगतिमां भटकुं छे, छेदन भेदन ताडन आदि दुःख पामबुं तेज तारी साथे मित्रताइ राखवा, फल, हवे तारी मित्राइ राखवी नथी, जा माराथी दूर! ___ कर्म-हे आत्मा तुं केम हवे अधीरो बन्यो छे, मारी संगतिथी दुःख तुं जो पामे छे, पण तेमां एक तने माटो लाभ छे ते तुं जाणे छे ?
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