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आत्मा-तारी मित्रताइ सखवामां शो मोटो लाभ छ ? ते बताव ?
कर्म-जो आत्मा ते मारी संगति न करी होत तो आ संसार नगरीनी मध्ये तुं शी रीते विचित्र पोषाक पहेरी फरी शकत ? हुँ छं त्यां सुधी तुं चार गतिमां फरी शके छे. ते केम याद करतो नथी ? ___ आत्मा-हे कर्म ! माफ करो, हवे तारी संगतिथी सयु, तारी संगतिथी चार गतिमा अनेक प्रकारना जन्म पामी रौरव दुःख भोगवां तेथी हुँ अकळायो छै. तुं तो दुःखनो आपनार छे.
कर्म-हे आत्मा तुं कंइ मारो उपकार याद करतो नथी. दुर्जननी पेठे मारा दोष सामु केम जुए छे. शं मारामां कंड गुण नथी?
आत्मा-हे कर्म ! तारा उपकारनी कोनी आगळ वात करूं? मारी अनंत शक्ति तारि संगतिथी नाश पामी छे, मने जड जेवो ते करी नाख्यो छे, एक क्षण मात्र पण हुं सुखी थतो नथी अवगुण रूप तारी मूर्ति छे. माटे हे कर्म ! हवे तुं माराथी दूर जा.
कर्म-हे आत्मा आटलां दिवस सुधी तुं मने मित्र तरिके मानतो हतो, मारामां तुं तल्लीन रहे तो हतो, हवे तने शु थयुं के तुं मने शत्रु तरीके जाणे छे, कया धूर्ते तने भरमाव्यो छे ?
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