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तथा मृदु सुकुमाळ, अने हलका पुद्गल घणा होक ते दृष्टिगोचरमां आवे नहीं. उपरांत औदारिक शरीर आदि प्रमुख सर्वना पुद्गल जे देख्यामां आवे छे, ते दृष्टिगोचर जाणवा. ए आठ वर्गणाओ अभव्य जीवने अनादि अनंत जाणवी. भव्य जीवने ए आठ वर्गणानो संबंध अनादि सांत छे, ए आठ वर्गणाओने केवली साक्षात् देखे छे, दरेक जीवने लागेली ए आठ वर्गणाओ एक सरखी होती नथी. आठ वर्गणाओ पण परस्पर वर्ण, गंध, रस, स्पर्श करी एक सरलं होती नथी. दरेक जीवने लागेली आठ वर्गणाओमाथी केटलाक परमाणुओ खरी जाय छ, अने पाछा केटलाक परमाणुओ. भळे छे, इत्यादिक तेनु स्वरुप जाणवू. एवी कर्म वर्गणाओने क्षपावी अनंता जीवोए सिद्धिस्थानमां गमन कर्यु, अने करे छे, अने करशे. पुद्गलना मळवाथी अनंत विचित्र बनायो बताये छ. एक तिलमात्र तालपुट विष मनुष्यना प्राण हरे छे, तो जे कर्मनी प्रकृतिमां विचित्र रसो होय छे, तेवी कर्मनी प्रकृ. तिथी आत्मा स्वभान भूली परभावमां रमे तेमां शुं आश्चर्य छे ?. क्षीर नीर संयोगवत् आत्मा कर्मनो संबंध जाणवो. कर्मयोगे विचित्र शरीरने धारण करतो आत्मा चारगतिमां भटके छे. जेम कोई माणसे दारु पान कर्यु पश्चात् ज्यारे निशो चढे त्यारे बेभान थइ जाय छे, तेम मोहनी कर्मरुपी दारुना योगे आत्मा अशुद्ध परिणाममय थयो छतो परवस्तुने पोतानी माने छे. तेना योगे पोताने सुखी या दुःखी माने छे पण
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