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स्वगुण रक्षणा तेह धर्म । स्वगुण विध्वंसनाते अधर्म ॥ भाव अध्यात्म अनुगत प्रवृत्ति । तेहथी होय संसार छित्ति ॥ १ ॥ पोताना गुणोनु रक्षण तेज धर्म अने पोताना गुणोनो नाश तेज अधर्म जाणवो. आ वात निश्चयनयानुसारे छे. तेथी व्यवहार धर्माचरण त्याग नहीं. व्यवहार धर्माचरण निश्चयनयने प्रगट करावे छे, श्री वीतरागोक्तनयानुसारे स्त्र शक्त्यनुं सार मन वचन अने कायानी एकाग्रताथी, धर्मानुष्ठान सेवq एज भव्यात्म हितशिक्षा छे. बाकी घेर घेर भटकवाथी विशेष शुं ? श्री सद्गुरु एक मस्तके धारण करी तेमनी आज्ञा मस्तके चढावी तेमना कहेला पवित्र धर्मने भक्ति बहुमान प्रीति पूर्वक प्रतिदिन चढता भावे सेववो. एज स्थिर प्रज्ञावंत शिष्योतुं कर्तव्य छे. बहु गुरुनो शिष्य अने बहु स्वामीनी स्त्री कदी इष्ट फल प्राप्त करतां नथी. आ वाक्य अनुभवथी विचारी जोवू, एक करतां घणा गुरु माथे करवाथी एक सरखी श्रद्धा रहेती ना, अने भक्ति बहु माननी खामी रहे छे. सद्गुरु तो एकज मस्तके धारण करवा, तेथी एक सरखी प्रीति रहे छे, अने भक्ति बहु मान अनायासे वृद्धि पामे छे. गुरुने पण शिष्यनी एक सरखी श्रद्धा जोइ अंत:करणथी तत्वोपदेश श्रापवानी रुचि जागे छे अने रुचिथी शिष्य ते उपदेश धारण
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