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करतो सुक्षेत्रनी पेठें घृणा फळने प्राप्त करे छे. बाकी ज्यां त्यां माधुं घालवाथी अतो भ्रष्ट स्ततो भ्रष्टः बने छे अने शंकास्पद मना थाय छे, पुष्टि करनारी पण बहु दवाओने एकी वखते भक्षण करी जाती नथी, पुष्टिकारक एकज दवा श्रद्धा पूर्वक अनुपान पूर्वक वापरवाथी शरीर पुष्ट बने छे तेमज एकज श्री सद्गुरु के जेथी तत्त्व पाम्या होइए, तेमनेज खरा अंत:करण पूर्वक तन मन धनथी पण अधिक गणी मरण पर्यंत सेववाथा सद्गति आत्मा प्राप्त करे छे. बाकी बीजाओनी गुणनी वात पण अंगीकार करवी. पण गुरुतो एक सद्गुरु हृदयमां स्थापन करवा अने अहर्निश तेमनु ध्यान करवुं, तेमना दोषो तरफ दृष्टि देवी नहीं, श्री सद्गुरुनी कोइ पापी निंदा करे तो ते सांभळवी नहीं, आ जगत्मां कर्म विचित्रताथी जीवोनी एक सरखी दृष्टि यती नथी. बीजाए स्वगुरुनी करेली निंदाथी पोताना सद्गुरु उपरथी प्रीति भाव जरा पण घटवो जोइए नहीं, अहर्निश तेमना सदुपदेशनुं स्मरण कर, अने व्यवहार निश्चयनयानुसारे आत्मस्वरूप जाणी स्व स्वभावमां रमनुं तेमांज स्वहित रह्यं छे.
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दुहा.
चर्मनयनथी देखतां । मुक्ति नहीं देखाय ॥ ज्ञानदृष्टिथी देखतां । मुक्ति करतलन्याय ॥१.५॥
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