________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्रोध, मान, माया, लोभ आदिथी रक्त रहे, सद्गुरु सेवन करवू नहीं, जिनेश्वर भगवाने कथन कर्या शास्त्राने सांभळषां नहीं, श्रावक अगर साधु धर्मने अंगीकार करवो नहीं, पोताना आत्माने रागादि शत्रुओ दुःख देता चार गतिमां भटकावे छे. ते उपर लक्ष आप नहीं. अष्ट कर्म आत्माने लाग्यां छे, ते यकी आत्माने छोडाववो नहीं, एम जे वर्तवू. ते स्वप्रतिनिर्दयत्व जाणवू, आ वे प्रकारनुं निर्दयत्व त्याग करवा योग्य छे. ज्यां परपति निर्दयत्व होय छे त्यां स्वप्रति निर्दयत्व होय छे. अने ज्यां स्वमति निर्दयत्व रह्यं छे त्यां अवश्य परपति निर्दयत्व जाणवू, स्व प्रति निर्दयत्व विशिष्ठ मनुष्यने सम्यकत्वनी प्राप्ति यती नथी. अने सम्यकत्वनी प्राप्ति थया बाद स्वप्रति निर्दयत्व रहेतुं नथी, मिथ्यात्वी जीव बाहिरथी कीडी, मंकोडा, कुंथुआ, जलचर, खेचर, आदि जीवनी दया करे, तेमनो घात करे नहि, मिथ्यात्वी, बाहिरथी ब्रह्मचर्यव्रत पाळे, कष्ट क्रिया अनेक करे, पण देव गुरु धर्मनी ओळखाण विना छार पर लीपणानी पेठे तेनुं सर्व जप तप, फोगट जाय छे, मिथ्यात्वी जीव गमे तेवी जीवदया पाळे पण पहेला गुणठाणे रह्यो जा
वो, श्री जिनेश्वरनां कहेला नवतत्त्व षड्द्रव्य आदि ज्ञानी स्वपति निर्दयत्व टळे छे. जे जीव ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रथी पोताना आत्मानी कर्मक्षय करी शुद्धि करे छे ते जीव परना
आत्माने पण बचावे छे माटे बे प्रकारनुं निर्दयत्व टळे तो हुँ निर्दय कहेवाउं नहीं. ज्यां सुधी प्रमाद दशामां संसारमा सार
For Private And Personal Use Only