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थाय छे, सद्गुरु समागमनी बलिहारी छे. पार्थमाणि सम, सदगुरु संगति छे.
गीति. सद्गुरु संगति पामी। भवकोटी कृत कर्म क्षय होवे ॥ पार्श्वमणि संयोगे। लोह कनक सुवर्णता वरे संगति जोवे ॥१॥ क्रोधादिक षड् रिपुओ। सद्गुरु संगतिथी दूरे जावे ॥ सद्गुरु वचनामृतथी। अजरामर पद आतममां आवे ॥ २॥ हजार वात्नी एक वात के मुक्ति पदना इच्छकोए पंच महाव्रत धारी श्री सद्गुरुनी संगति करवी, कोइ ज्ञानीने निदय कहे तो ज्ञानीने तेथी खेद उत्पन्न थतो नथी. ज्ञानी पुरुषो कदी निर्दयत्व एटले पोताथी भिन्न आत्माओनो धन माल टुटी लेवो, प्राणीओने मारी नाखवा, खावा पीवा आप नहीं, प्राणीओनां अंग छेदवां, जीवतां प्राणीओने कापी नाखवां आ वीजो जीव प्रति निर्दयत्व छे, बीजूं मिथ्यात्व भावे रम,
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